Karunatripadi
।।श्रीकरुणात्रिपदी।।
शांत हो श्रीगुरुदत्ता। मम चित्ता शमवी आतां।।ध्रु०।।
तूं केवळ माता जनिता। सर्वथा तूं हितकर्ता।।
तूं आप्तस्वजन भ्राता। सर्वथा तूचि त्राता।।
(चाल) भयकर्ता तूं भयहर्ता। दंडधर्ता तूं परिपाता। तुजवाचुनि न दुजी वार्ता।
तूं आर्ता आश्रय दत्ता।। शांत हो श्रीगुरुदत्ता.. ।।१।।
अपराधास्तव गुरुनाथा। जरि दंडा धरिसी यथार्था।।
तरि आम्ही गाउनि गाथा। तव चरणीं नमवूं माथा।।
(चाल) तूं तथापि दंडिसी देवा। कोणाचा मग करूं धावा? सोडविता दुसरा तेव्हां।
कोण दत्ता आम्हां त्राता? शांत हो श्रीगुरुदत्ता.. ।।२।।
तूं नटसा होउनि कोपी। दंडितांहि आम्ही पापी।
पुनरपिही चुकत तथापि। आम्हांवरि नच संतापी।।
(चाल) गच्छतः स्खलनं क्वापि। असें मानुनि नच हो कोपी। निजकृपालेशा ओपी।
आम्हांवरि तूं भगवंता।। शांत हो श्रीगुरुदत्ता.. ।।३।।
तव पदरीं असता ताता। आडमार्गीं पाऊल पडतां।
सांभाळुनि मार्गावरता। आणिता न दूजा त्राता।
(चाल) निजबिरुदा आणुनि चित्ता। तूं पतीतपावन दत्ता। वळे आतां आम्हांवरता।
करुणाघन तूं गुरुनाथा।। शांत हो श्रीगुरुदत्ता.. ।।४।।
सहकुटुंब सहपरिवार। दास आम्ही हें घरदार।
तव पदी अर्पुं असार। संसाराहित हा भार।
(चाल) परिहरिसी करुणासिंधो। तूं दीनानाथ सुबंधो। आम्हां अघलेश न बाधो।
वासुदेव प्रार्थित दत्ता।। शांत हो श्रीगुरुदत्ता। मम चित्ता शमवी आतां।।५।।
2
श्रीगुरुदत्ता जय भगवंता। तें मन निष्ठुर न करी आता।।ध्रु०।।
चोरें द्विजासी मारीतां मन जें। कळवळलें तें कळवळो आतां।। श्रीगुरुदत्ता।।१।।
पोटशूळानें द्विज तडफडतां। कळवळलें तें कळवळो आतां।। श्रीगुरुदत्ता।।२।।
द्विजसुत मरता वळलें तें मन। हो कीं उदासीन न वळे आतां।। श्रीगुरुदत्ता।।३।।
सतिपति मरता काकुळती येतां। वळलें तें मन न वळे कीं आतां।। श्रीगुरुदत्ता।।४।।
श्रीगुरुदत्ता त्यजि निष्ठुरता। कोमल चित्ता वळवी आतां।। श्रीगुरुदत्ता।।५।।
3
जय करुणाघन निजजनजीवन। अनसूयानंदन पाहि जनार्दन।।ध्रु०।।
निजअपराधें उफराटी दृष्टी। होउनि पोटीं भय धरूं पावन।।१।।जय०।।
तूं करुणाकर कधीं आम्हांवर। रुसशी न किंकर-वरदकृपाघन।।२।।जय०।।
वारी अपराध तूं मायबाप। तव मनीं कोपलेश न वामन।।३।।जय०।।
बालकापराधा गणे जरी माता। तरी कोण त्राता देईल जीवन।।४।।जय०।।
प्रार्थी वासुदेव पदिं ठेवी भाव। पदीं देवो ठाव देव अत्रिनंदन।।५।।जय०।।
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